संडे की छुट्टी का आगाज कब और कैसे हुआ, यह एक ऐसा सवाल है जो हर किसी के मन में उठता है। संडे के दिन हम सभी रिलैक्स होते हैं और इसका आनंद लेते हैं। जीवन की भागदौड़ और अनुशासन से भरी दिनचर्या में संडे का दिन एक अलग महत्व रखता है। भारत में अंग्रेज शासन के दौरान, श्रमिकों को रोज काम कराया जाता था और कोई आराम का दिन नहीं था। इसके खिलाफ आंदोलन भी हुआ।
संडे की छुट्टी का शुरूआती स्त्रोत रोमन साम्राज्य को जाता है, जहां से यह अवधारणा फैली और फिर धीरे-धीरे यह दुनिया भर में फैल गई। चीन में भी संडे की छुट्टी का प्रारंभ होने के पीछे नहाने की अवधारणा थी।सन् 321 ई. में सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने रविवार को सार्वजनिक अवकाश का दिन घोषित किया।
इस दिन लोग ईसाई धर्म के और रोमन सूर्य देवता सोल इनविक्टस के लिए प्रार्थना करते थे और आराम करते थे। इसी कारण रविवार को पवित्र और छुट्टी का दिन घोषित किया गया।
इसके बाद, यह अवधारणा यूरोप में प्रसारित हुई और फिर यूरोप और अमेरिका में क्रिश्चियन समुदाय के लोगों ने चर्च जाकर इस दिन की प्रार्थना करना शुरू किया। कई विद्वानों का मानना है कि पहले सात दिन के सप्ताह का अवधारणा भारत में आया और फिर यह चीन में प्रसारित हुआ।
शनिवार की छुट्टी भी इसी तरह से शुरू हुई। रोमन सम्राटों ने चाहा कि शनिवार को आधे दिन की या पूरे दिन की छुट्टी मिले, क्योंकि शनिवार यहूदियों के बीच ‘सब्बाथ’ का दिन था।
भारत में संडे की छुट्टी कैसे आई,
इसके पीछे महाराष्ट्र के श्रमिक नेता नारायण मेघाजी लोखंडे का बड़ा हाथ है। अंग्रेजों के शासन के दौरान, भारतीय श्रमिकों को सप्ताह के सात दिनों तक काम करना पड़ता था, लेकिन उन्हें कोई छुट्टी नहीं मिलती थी। नारायण मेघाजी लोखंडे ने इस विरोध में आंदोलन किया, जिसके बाद अंततः 10 जून 1890 को ब्रिटिश सरकार ने मजदूरों के लिए संडे को अवकाश घोषित किया।”
शायद आपको यह पसंद आये